प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ (Major Civilizations of the Ancient World) Chapter – 2

अध्याय – 2
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
मानव व उसकी सभ्यता का उद्भव एवं विकास एक रोचक कहानी है। इन सभ्यताओं का बहुत बड़ा भाग अतीत के घने कोहरे में छिपा है । इसको समझने का प्रयास निरन्तर जारी है। ये सभ्यताएँ विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय में विकसित हुई। जब व्यक्ति स्थायी रूप से रहना शुरू करता है तब व्यवस्थित जीवन बिताने के प्रयास में उसके चारों ओर एक सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एंव आर्थिक व्यवस्था का निर्माण शुरु हो जाता है।
यही व्यवस्था सभ्यता का निर्माण करती है। जिन सभ्यताओं की जानकारी आज तक प्राप्त हुई है, उन सभ्यताओं का वर्णन निम्न प्रकार से है :
उत्तरी अमेरिका
विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ
यूरोप
एशिया
अन्ध महासागर,
अफ़्रीका
प्रशांत महासागर
दक्षिण अमेरिका
अंटार्टिका
हिंद महासागर
सूची
सरस्वती सिंधु सभ्यता
चीन की सभ्यता
मेसोपोटामिया की सभ्यता
मिस्र की सभ्यता
ऑस्ट्रेलिया
माया की सभ्यता
इंका की सभ्यता
मानचित्र विश्व की प्राचीन सभ्यताएं
मिस्र की सभ्यता
मिस्र की सभ्यता का विकास लगभग सात हजार वर्ष पूर्व हो गया था। प्राचीनकाल में मिस्र छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। लगभग 4000 ई. पूर्व में ये राज्य संयुक्त होकर दो राज्यों में संगठित हो गये। पहला, उत्तर मिस्र अथवा नील नदी के मुहाने का राज्य और दूसरा दक्षिण मिस्र अथवा नील नदी की घाटी का राज्य । उत्तर मिस्र की राजधानी ‘बूटो’ व राजचिह्न ‘मधुमक्खी’ था। दक्षिण मिस्र की राजधानी ‘तैखेबे’ व राजचिह्न ‘पेपाइरस का गुच्छा’ था। मेना या मिनिस नामक राजा ने 3400 ई. पूर्व में इन दोनों राज्यों को मिलाकर सम्पूर्ण मिस्र को अपने अधीन कर लिया। मेना एक सफल विजेता और महान सेनानायक था। उसने मेम्फिस को मिस्र की राजधानी बनाया और वहां राजतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था स्थापित की। इसी ने मिस्र के प्रथम राजवंश की स्थापना की।
चित्र 1: मिस्र का पिरामिड
गतिविधि : जानने का प्रयास करें कि नील नदी ने किस प्रकार मिस्र की सभ्यता का पालन पोषण
किया?
क्या आप जानते है?
मिस्र के ज्ञान को दुनिया तक ले जाने में फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
मिस्र का इतिहास जानने के साधन :
साहित्यिक साधन : हेरोडोटस, डायोडोटस, मेनेथो
पुरातात्त्विक साधन : पिरामिड, समाधियाँ (मस्तबे), भित्ति-चित्र, मंदिर,रोसेटा अभिलेख
आधुनिक साधन : एडोल्डफ इरमान व जे. एस. ब्रस्टेड की पुस्तकें।
राजनीति
मिस्र का राजा ‘फराओ’ कहलाता था। फराओ न्याय और ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। मिस्र के राजनीतिक इतिहास को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है
:
- प्राचीन काल या पिरामिड युग ( 3400 ई. पू. से 2160 ई. पू.)
- मध्यकाल या सामन्तवादी युग (2160 ई. पू. से 1580 ई. पू.)
- नवीनकाल या साम्राज्यवादी युग (1580 ई. पू. से 650 ई. पू.)
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
1. पिरामिड युग :
इस युग में छह राजवंशों ने शासन किया। इनमें प्रमुख शासक नरमेर, अट्टा, जोसर, इमहोटेप, खुफ, यूसरेकाफ, खाफ्रे आदि थे। इन फराओ ने विशाल पत्थरों के गगनचुम्बी पिरामिडों (त्रिभुजाकार समाधियाँ) का निर्माण करवाया। मिस्र की आधुनिक राजधानी काहिरा के दक्षिण में मेम्फिस नामक नगर के पास आज भी 70 पिरामिड मौजूद हैं। मिस्र में पिरामिडों को बनाने का श्रेय ‘इमहोटेप’ को जाता है जो तीसरे राजवंश के फराओ जोसर का वजीर था। इनकी रचना मिस्र के लोगों ने अपने राज्य और उसके प्रतीक फराओ की अनश्वरता एवं गौरव को अभिव्यक्त करने के लिए की थी । मिस्र के शासक सूर्य देवता को अपना इष्ट देवता मानते थे। अतः उन्होंने सूर्य को प्रसन्न करने के लिए विशाल पिरामिडों का निर्माण करवाया। पिरामिडों के निर्माण का उद्देश्य धार्मिक पवित्रता थी। लोगों को रोजगार देना भी इनका उद्देश्य रहा होगा। अपनी संस्कृति को दीर्घायु करने का भी उद्देश्य रहा होगा ।
2. सामन्तवादी युग ( 2160 ई. पू. से 1580 ई. पू.) :
सामन्तवादी युग में पांच राजवंशों ने शासन किया। इनमें प्रमुख शासक थे। इंटे, मेतुहोतेप, अमनहोतेप, सेनवो, सरेत आदि। इस युग में मिस्र अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया और राज्य शक्ति सामन्तों के हाथ में आ गई। सामन्तों की प्रतिस्पर्धा के कारण प्रत्येक जागीर का चहुंमुखी विकास हुआ। इस समय मकबरों का निर्माण हुआ और व्यापार तथा कृषि का भी विकास हुआ, जिसके फलस्वरूप उनके नगर सभ्यता के केन्द्र बन गए। ये सामन्त आपस में लड़ते रहते थे। चारों ओर अशान्ति तथा अराजकता व्याप्त थी। ऐसे में सीरिया के हिक्सास लोगों ने मिस्र पर अधिकार कर लिया। ये स्थानीय जनता का शोषण करने लगे, जिससे आम जनता को हिक्सास लोगों से घृणा हो गई और अन्त में थिब्स के सामन्त अमोसिस ने हिक्सास लोगों को मिस्र से मार भगाया और स्वयं शासन करने लगे। आने वाले वंशों के शासक कठपुतली थे।
चित्र 2: गीजा का पिरामिड ………
चित्र 3: मिस्र की लिपि
प्राचीन मिस्र के लोग यह जानते थे कि सूर्य का प्रकाश व उष्णता जीवन के लिए आवश्यक है। इसलिए वे सूर्य देवता ‘रे’, ‘रा’ को सृष्टि का
कारण मानते थे।
3. साम्राज्यवादी युग ( 1580 ई. पू. से 650 ई. पू.) :
इस युग का प्रारंभ अट्ठारहवें राजवंश के शासक अमेनहोटेप द्वारा सामन्तों की शक्ति को समाप्त करके सुसंगठित शासन – व्यवस्था की स्थापना से हुआ था। इस काल में जनता सुखी और समृद्ध थी। इस युग में कई राजवंशों ने शासन किया, इनमें प्रमुख थे- अमेनहोटेप द्वितीय, अहमोज प्रथम, थुटमोस प्रथम, अमेनहोटेप तृतीय, हातशोपसुत ( महिला शासिका) आदि थे। जिन्होंने मिस्र को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक ऊँचाइयों तक पहुँचाया। मिस्र में लगभग 31 राजवंशों ने 3100 वर्षों तक शासन किया। अंत में 332 ई. पू. में यूनान के शासक सिकन्दर ने मिस्र पर अधिकार कर लिया और
सिकन्दर की मृत्यु के बाद मिस्र में टालेमी वंश का शासन स्थापित हो गया।
चित्र 4: मिस्र के मन्दिर
गतिविधि : मिस्र के प्रमुख पिरामिडों
के नामों की सूची बनाएं।
प्रशासनिक व्यवस्था
1. फराओ (राजा) : फराओ को असीम अधिकार प्राप्त थे। वह निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक था ।
शासन की समस्त शक्तियाँ उसके हाथ में निहित थीं। फराओ को देवता माना जाता था।
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2. वजीर : फराओ के बाद शासन में सबसे महत्वपूर्ण पद वजीर का था। वह शासन संचालन के कार्य में फराओं की सहायता करता था। उसका मुख्य कार्य लगान वसूल करना एवं आय-व्यय का हिसाब रखना था।
3. सैन्य संगठन : प्रारम्भ में मिस्र के फराओ के पास स्थायी सेना नहीं थी। फराओ का सैन्य संगठन सामन्तवादी प्रथा पर आधारित था। बाद में बारहवें राजवंश के समय फराओ ने स्थायी सेना की व्यवस्था की।
4. परिषद् : फराओ के दरबार में वृद्ध दरबारियों की एक अलग परिषद् थी, जिसे सारू कहते थे। सारू फराओ
को परामर्श देती थी।
5. प्रान्तीय शासन : फराओ ने शासन की सुविधा की दृष्टि से साम्राज्य को कई प्रान्तों में विभक्त कर रखा था। प्रत्येक प्रान्त को नोम तथा उसके शासक को नोमार्क कहते थे। नोमार्क की नियुक्ति फराओ द्वारा की जाती थी।
6. स्थानीय शासन : गांवों का शासन प्रबंध सामन्तों के हाथ में था, जिन्हें पुलिस तथा न्याय सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे। नगरों में एक प्रशासनिक अधिकारी होता था जो शांति बनाए रखना, राजस्व कर वसूल करना आदि कार्य करता था।
7. न्याय-व्यवस्था : फराओ प्रमुख न्यायधीश होता था। मुकद्दमा लिखित रूप में चलाया जाता था। फराओ मुकद्दमे का फैसला तीन दिन में कर देता था। अपराधी को कठोर सजा दी जाती थी, जैसे- डण्डे से पीटना, अंग-भंग करना, देश निकाला देना।
अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य
1. कृषि : मिस्र एक कृषि प्रधान देश था । यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, जौ, कपास, सण और फलों में अंगूर,
अंजीर एवं खजूर आदि थे। फराओ कृषि की ओर विशेष ध्यान देते थे। सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करते थे।
2. पशुपालन : मिस्र के लोग पशुओं को पालते थे। वे गाय, भेड़, गधा, बछड़ा, बन्दर और मुर्गी आदि
पालते थे।
3. उद्योग-धन्धे : मिस्रवासी अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धों में प्रवीण थे। वे पत्थर काटने, गहने एवं बर्तन
बनाने, तांबे तथा कांसे के हथियार बनाने एवं लकड़ी का फर्नीचर बनाने में कुशल थे। मिस्र के लोग नाव एवं जहाज के निर्माण में भी निपुण थे। मिट्टी के बर्तन बनाना तथा कपड़े बुनना वहाँ के महत्वपूर्ण उद्योग बन गये। वहाँ पेपिरस नामक घास के पौधों से कागज बनाया जाता था तथा विभिन्न तरह की चिकित्सक सामग्री भी बनाई जाती थी।
4. वाणिज्य और व्यापार : मिस्र में वाणिज्य और व्यापार का भी बहुत विकास हुआ। वहाँ आन्तरिक व्यापार नील नदी के द्वारा होता था । मिस्र, भारत और अरब से मसाले, रंग, तेल, पाउडर और चन्दन मंगवाता था। पशुओं का भी लेन-देन किया जाता था।
चित्र 5: मिस्र में कब्रों से प्राप्त धातु के बर्तन
संस्कृति एवं धर्म
मिस्रवासी बहुदेववादी थे और प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करते थे। मिस्र में कुल मिलाकर तीन हजार देवता थे। मिस्र का सबसे बड़ा देवता सूर्य था, जिसे रे, रा, होरस, एवं एमन आदि कई नामों से पुकारा जाता था। सूर्य के बाद नील नदी के देवता ‘ओसिरिस’ का प्राधान्य था। मिस्रवासी नूत (आकाश का देवता ) तथा सिन ( चन्द्रमा) की भी उपासना करते थे। फराओ एवं सामंतों के मरणोपरांत उन्हें ऊँचे-ऊँचे मकबरों में रासायनिक लेप करके कब्र में रख देते थे। इससे मृत शरीर खराब नहीं होता था। इन्हें
‘ममी’ कहा जाता था। इन मकबरों को पिरामिड
कहा जाता है।
चित्र 6: मिस्र से प्राप्त ममी
गतिविधि : मिस्र के प्रमुख देवी-देवताओं व भारत के प्रमुख देवी-देवताओं की सूची बनाकर तुलना करें।
उपयोगी शब्द फराओ, पिरामिड, नोम, ममी, मैंम्फिस
मिस्र की सभ्यता की संसार को देन :
1. मिस्र ने विश्व को 365 दिन का एक वर्ष तथा कलेण्डर प्रदान किया।
2. सूर्य घड़ी व जल घड़ी का आविष्कार किया ।
3. औषधि विज्ञान के क्षेत्र में अनेक खोजें की। उन्होंने ऐसा रासायनिक लेप तैयार किया जिससे मृतक शरीर को शताब्दियों तक सुरक्षित रखा जा सकता था।
4. मिस्र की एक सूची में विभिन्न बीमारियों से संबंधित 600 दवाइयों के नामों का उल्लेख मिलता है।
5. एकेश्वरवाद के सिद्धांत का प्रचलन किया।
आओ फिर से याद करें :
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
1. मिस्र के इतिहास को जानने के साधन कौन-कौन से हैं?
2. मिस्र के इतिहास को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
3. मिस्र के लोगों की आर्थिक गतिविधियाँ कौन-कौन सी थी ?
विस्तार से विवरण दें :
1. मिस्र की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालें।
2. मिस्र की संसार को क्या देन है?
आओ करके देखें :
1. मिस्र के प्राचीन नगरों एवं आधुनिक नगरों की सूची बनाकर उनकी तुलना करें।
2. मिस्र के मानचित्र पर वहां के व्यापारिक नगर अंकित करें।
मेसोपोटामिया की सभ्यता
फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित आधुनिक ईराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया कहते थे । यह यूनानी भाषा का शब्द है । यह दो शब्दों ‘मेसो’ और ‘पोटम’ से मिलकर बना है। ‘मेसो’ का अर्थ मध्य तथा ‘पोटम’ का अर्थ नदी होता है। इस प्रकार मेसोपोटामिया का
शाब्दिक अर्थ दो नदियों के बीच का भाग होता है। ये दो नदियाँ दजला व फरात हैं। मेसोपोटामिया में सुमेरियन, बेबीलोनियन, असीरियन सभ्यताओं का विकास हुआ था। इन सभ्यताओं के बारे में कहा जाता है कि सुमेरिया ने सभ्यता को जन्म दिया, बेबीलोन ने उसे चरम सीमा पर पहुँचाया और असीरिया ने इसे ग्रहण करके प्रगति की । इन
सभ्यताओं का वर्णन इस प्रकार है
मेसोपोटामिया की सभ्यताओं को जानने के साधन :
बेहिस्तून अभिलेख ।
> सूसा अभिलेख |
रोसेटा अभिलेख |
धार्मिक साहित्य |
> उर, एरिडु, लगाश, निप्पुर आदि नगरों की खुदाइयों से मिलने वाली सामग्री।
> मिट्टी की पट्टिकाओं पर खुदे लेख, जिगुरात ।
> हम्मूराबी की संहिता ।
चित्र 7 : मेसोपोटामिया की मोहर
1. सुमेरिया की सभ्यता :
4500 ई. पू. फारस की सुमेरियन जाति के लोगों ने मेसोपोटामिया पर आक्रमण किया और यहाँ की अक्काद, बेबीलोन, एलम एवं मूसा आदि जातियों को पराजित कर यहाँ पर अपना अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् यहाँ छोटे-छोटे नगर राज्य स्थापित हुए। धीरे-धीरे यहाँ सभ्यता का विकास हुआ। सुमेरिया में उस समय उर, निपुर, लगाश, उरूक आदि नगर राज्य थे, जो एक दूसरे से स्वतंत्र थे । प्रत्येक नगर का अपना देवता था। नगर-राज्य के स्वतंत्र शासक को ‘पटेसी’ कहते थे। पटेसी के मुख्य कार्य थे – भूमि कर वसूल करना, बाहरी आक्रमणों से नगर की रक्षा करना, जनता के मुकद्दमों पर निर्णय देना आदि । सुमेरिया के लोगों ने एक लिपि का आविष्कार किया जिसे ‘कीलाक्षर लिपि’ कहा जाता है।
चित्र 8 : जिगुरात
गतिविधि : यह जानने का प्रयास करें कि दजला व फरात नदियों ने किस प्रकार प्राचीन ईराक में सभ्यताओं का पालन पोषण किया।
सुमेर के नगरों में पिरामिड के आकार में बनाए जाने वाले ऊँचे मंदिरों को जिगुरात कहा जाता है। बेबीलोन का जिगुरात 300 फुट लम्बा, 300 फुट चौड़ा व 300 फुट ऊँचा था ।
चित्र 9: कीलाक्षर लिपि
सुमेर के नगरों में पिरामिड के आकार में बनाए जाने वाले ऊँचे मंदिरों को जिगुरात कहा जाता है। बेबीलोन का जिगुरात 300 फुट लम्बा, 300 फुट चौड़ा व 300 फुट ऊँचा था ।
2. बेबीलोनिया की सभ्यता :
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में हेमराइट नदी के किनारे बेबीलोनिया की सभ्यता का विकास हुआ। 2200 ई. पू. में सेमेटिक लोगों की एक शाखा एमराइट ने सुमेर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। लगभग सौ वर्षों के निरन्तर संघर्ष व युद्धों के बाद इस जाति के महान् राजा हम्मूराबी ने सम्पूर्ण मेसोपोटामिया पर अधिकार करके साम्राज्य को राजनीतिक एकता में बांधा। उन्होंने बेबीलोन को राजधानी बनाया व एक विधिसंहिता भी बनाई। उसने अपने साम्राज्य को प्रगति की चरम सीमा तक पहुँचा दिया। यहाँ के प्रमुख शासक थे – निसि, अम्मी जादूगा, नेबुचडरेन्नर, गंदाश केस्साइट, शंशीअदाद, नवोपोलासर आदि। उन्होंने 536 ई. पू. तक शासन किया।
सेमेटिक : मध्य पूर्व की तरफ से आने वाली व सामी भाषा बोलने वाली जाति ।
गतिविधि : मेसोपोटामिया के प्राचीन नगरों एवं ईराक के आधुनिक नगरों की सूची बनाकर तुलना करें।
3. असीरिया की सभ्यता :
सेमेटिक लोगों ने दजला नदी के ऊपरी तट पर अधिकार करके अशुर नगर बसाया। इस नगर के नाम पर ही यह सभ्यता असीरिया की सभ्यता के नाम से प्रसिद्ध हुई। सेमेटिक लोग ने 700 वर्षों तक यहाँ पर शासन किया। यहाँ का प्रथम शक्तिशाली राजा तिगलथ पिलेसर प्रथम था। अन्य प्रमुख शासक थे- सारगन द्वितीय, सेनोचरिब, एसारहद्दन आदि । अशुर बनिपाल असीरिया का अन्तिम प्रतापी और प्रसिद्ध शासक था। उनका साम्राज्य बेबीलोन, मीडिया, फिनिशिया, सुमेरिया तथा एलम तक फैला हुआ था । अशुर बनिपाल के समय में व्यापार, शिक्षा और कला आदि क्षेत्रों में असाधारण उन्नति हुई। उसने अपनी राजधानी निन्वेह में भव्य महलों तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। उसकी मृत्यु के पश्चात् असीरिया का साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हो गया एवं 612 ई. पू. में चेल्डियों ने इस पर अधिकार कर लिया। असीरिया में राजा सेना का सर्वोच्च नायक होता था। उसके पश्चात् लिम्मू या तुर्तान नामक पदाधिकारी सेनाध्यक्ष होते थे ।
असीरिया के सम्राट स्थापत्य कला के प्रेमी थे। उन्होंने निन्वेह तथा असुर में भव्य प्रासादों, मन्दिरों तथा पुस्तकालयों का निर्माण करवाया था। असीरिया का प्रत्येक राजा पुराने महल को त्यागकर अपने लिए नवीन महल का निर्माण करवाता था । असीरियन सम्राटों ने निरंकुश नीति के आधार पर 150 वर्षों तक शासन किया।
प्रशासनिक व्यवस्था :
मेसोपोटामिया सभ्यता की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था सामान्यतः एक जैसी रही है। शासक निरंकुश होते थे तथा साम्राज्य में उनका पूर्ण नियंत्रण होता था लेकिन यहाँ शुरुआती दौर में प्रजातांत्रिक व्यवस्था थी जो बाद में राजतंत्र के रूप में स्थापित हो गई। वे दैविक सिद्धांत के आधार पर शासन करते थे। वे सर्वोच्च सेनापति, न्यायाधीश व सर्वोच्च पदाधिकारी होते थे। विभिन्न सभ्यताओं में शासक को अलग-अलग नामों से जाना जाता था। वे शासन के संचालन की सुविधा की दृष्टि से अपने साम्राज्य को कई प्रांतों में बांट देते थे। प्रान्त के गवर्नर का चयन स्वयं करते थे। गवर्नर अपने प्रांत से कर इकट्ठा करने, शांति बनाए रखने, युद्ध में शासक का सहयोग करने का कार्य करते थे।
सामाजिक जीवन :
उस समय का समाज तीन वर्गों उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग में विभक्त था। उच्च वर्ग में राजा, उच्च पदाधिकारी व पुरोहित आदि आते थे। मध्यम वर्ग में सामंत और व्यापारी आदि आते थे। निम्न वर्ग में दास तथा किसान सम्मिलित थे। समाज में नैतिकता के आदर्श बहुत ऊँचे थे। समाज में स्त्रियों की दशा सामान्य थी। नैतिकता उनके लिए जरूरी थी।
थे।
धार्मिक जीवन :
मेसोपोटामिया के लोग बहुदेववादी थे। प्रत्येक नगर के अपने अलग-अलग देवता थे। ये खेत, नदियों, पहाड़ों की भी पूजा करते थे । इनके प्रमुख देवता अनु (आकाश का देवता ), की (पृथ्वी), सिन (चन्द्रमा), तम्मुज (वनस्पति और कृषि का देवता), ईश्तर (प्रेम की देवी), नरगल ( प्लेग का देवता) आदि थे। इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि दी जाती थी। विभिन्न देवी-देवताओं के मन्दिर बनाए गए आर्थिक जीवन : लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। इसमें गेहूँ, जौ, जैतून, कपास व अंगूर आदि की खेती की जाती थी। उस समय उद्योग एवं व्यापार भी उन्नत थे। उद्योग एवं व्यापार में संघ बने हुए थे। विनिमय सोना, चांदी और तांबे के टुकड़ों से होता था । यहाँ पशुओं में ऊँट और बकरी विशेष थी। यहाँ लकड़ी पर सुन्दर नक्काशी करके विभिन्न तरह के सामान बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त सोना-चांदी व कीमती पत्थर पर भी नक्काशी की जाती थी ।
आओ फिर से याद करें :
1. मेसोपोटामिया का अर्थ क्या है?
2. मेसोपोटामिया क्षेत्र में विकसित होने वाली विभिन्न सभ्यता कौन-कौन सी थी ?
3. जिगुरात क्या होते हैं?
उपयोगी शब्द मेसोपोटामिया, जिगुरात, हम्मूराबी, लिम्मू, दास
विस्तार से विवरण दें :
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
1. मेसोपोटामिया सभ्यता के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन का वर्णन करें।
आओ करके देखें :
1. प्राचीन मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं की सूची बनाकर उनकी तुलना मिस्र व भारत के
देवी-देवताओं से करें।
2. मेसोपोटामिया के प्राचीन नगरों को विश्व के मानचित्र पर दर्शाएं।
यूनानी सभ्यता
यूरोप के दक्षिण-
पूर्व में स्थित यूनान एक प्रायद्वीप है। यह तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। इसमें 502 टापू हैं जिनमें क्रीट, ट्राय, साइप्रस, एथेन्स, मैसीडोन और स्पार्टा आदि मुख्य हैं। इस द्वीप पर लगभग 4000 ई.पू. में एक सभ्यता का उदय एवं विकास हुआ जिसे क्रीट की सभ्यता कहते हैं यह सभ्यता 1500 ई. पू. तक बनी रही । नौंसस तथा फीस्टस ट्राय इस सभ्यता के गढ़ थे । क्रीट की सभ्यता के पतन के पश्चात माइसिन नामक नगर में माईसिनियन सभ्यता का उदय हुआ जो 1200 ई.पू. तक चली। 1200 ई. पू. में आर्यन कबिलों ने यूनान पर अधिकार करके विभिन्न नगर राज्यों में विकसित सभ्यताओं को जन्म दिया। ये छोटे-छोटे नगर राज्य प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर आधारित थे । इन नगर राज्यों को ‘पोलिस’ भी कहते थे । प्रत्येक नगर की अपनी अलग सेना और सरकार थी। ये नगर राज्य आपस में लड़ते रहते थे। इस सभ्यता के राजनीतिक इतिहास को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्ति किया जा सकता है
- 1. अन्धकार युग या होमर युग (1200 ई.पू. से 800 ई.पू.)
- 2. लौह युग या नगर राज्य युग (800 ई.पू. से 500 ई.पू.)
- 3. हैलेनिस्टिक युग (500 ई.पू. से 200 ई.पू.)
यूनान की सभ्यता को जानने के साधन :
होमर द्वारा रचित महाकाव्य इलियड व ओडिसी ।
– हेरोडोटस की रचना हिस्टोरिका ।
एथेंस, कोरिंथ, स्र्पाटा, थीब्स आदि नगरों की खुदाइयों से मिलने वाली सामग्री ।
थ्यूसीडाइडीज की रचना पेलोपोनेशियन युद्ध ।
प्लेटो एवं अरस्तु की रचनाएं ।
चित्र 10:होमर
चित्र 11:हेरोडोटस
1. प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था :
इस समय यहाँ विभिन्न राजवंशों के शासकों ने शासन किया। राजा निरंकुश होते थे। कई बार प्रजातांत्रिक भी होते थे। राजा को प्रजा ईश्वरतुल्य मानती थी। राजा एक
परिषद् के परामर्श से शासन का संचालन करता था । परिषद में उच्च वर्ग के सम्मानित व्यक्ति होते थे। इस परिषद् का नाम ‘ब्यूल’ था। जनसाधारण की आमसभा को ‘एगोरा’ कहते थे। इस आमसभा में समस्त स्वतंत्र नागरिक भाग लेते थे । सिकन्दर का समय विश्व इतिहास में ‘हेलेनिस्टिक युग’ के नाम से प्रसिद्ध है। सिकन्दर ने 336 ई.पू. में अपने पिता फिलिप का वध कर दिया और मकदूनिया (मेसीडोनिया) का शासक बन गया। उसने यूनान में हुए विद्रोहों को कुचल दिया और समस्त यूनान पर अपना अधिकार कर लिया। यूनान में उस समय लगभग 150 नगर राज्य थे । प्रत्येक राज्य में तीन प्रकार के नागरिक होते थे- 1. स्वतंत्र नागरिक 2. विदेशी नागरिक 3. दास। स्वतंत्र नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त थे। यूनान के नागरिकों द्वारा जनसभा (एक्सलेशिया) के सदस्यों का चुनाव किया जाता था।
चित्र 12: यूनान का भवन
गतिविधि : यूनान के प्राचीन नगरों की सूची बनाएं।
2. सामाजिक व्यवस्था : समाज चार वर्गों में विभाजित था। प्रथम कुलीन वर्ग। यह वर्ग विशाल भू-सम्पत्ति का स्वामी था तथा इसके पास बहुत बड़ी संख्या में दास थे। यह वर्ग युद्ध के समय नेतृत्व करता था। दूसरा मध्य वर्ग था जिसमें साधारण नागरिक शामिल थे, इन्हें फ्रीमैन अथवा परोआसी कहा जाता था। यह वर्ग व्यापार एवं वाणिज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। तीसरा वर्ग स्वतंत्र श्रमिकों का था, जिसे ‘ थीट्स’ कहा जाता था। चौथा वर्ग दासों का था, जिन्हें ‘हलोट’ कहा जाता था। धार्मिक विश्वासों तथा सामाजिक प्रथाओं का समाज में प्रचलन था ।
3. आर्थिक एवं वाणिज्यिक व्यवस्था : यूनान आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था। यूनान का व्यापार दूर-दूर तक होता था। इन लोगों के उद्योग मिट्टी व धातु के बर्तन बनाना, अस्त्र-शस्त्र बनाना, फर्नीचर बनाना, जैतून से तेल बनाना एवं अंगूर से शराब बनाना आदि प्रमुख थे। यूनान के पहाड़ों में सोना, चांदी व लोहा निकलता था। यहाँ कृषि पर ध्यान नहीं दिया जाता था ।
4. धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन : यूनान के लोग बहुदेववादी थे और मूर्तिपूजक भी। ये लोग प्राकृतिक शक्तियों तथा जानवरों की भी पूजा करते थे। उनका भूत-प्रेत में भी विश्वास था । इनके मुख्य देवी-देवता जियस (आकाश का देवता ), अपोलो (सूर्य), हर्मस (व्यापार का देवता ), पोसीडॉन (समुद्र का देवता), मार्स ( युद्ध का देवता), डेमीटर ( अन्न की देवी) आदि थे। यहाँ के लोग विभिन्न तरह के मनोरंजन के साधनों में विश्वास रखते थे: नाचना, गाना, पशुओं की यूरोप के प्रथम इतिहासकार हेरोडोटस को प्रसिद्ध यूनानी शासक पेरिक्लीज के लड़ाई करवाना आदि यूनानी संस्कृति ने निश्चय ही विश्व को अमूल्य देन दी है। यूनानियों ने कई भव्य मन्दिरों, आकर्षक तथा विशाल मूर्तियों का निर्माण करवाया।
क्या आप जानते
दरबार में संरक्षण प्राप्त था।
है?
आओ फिर से याद करें :
1. यूनान के इतिहास को राजनीतिक दृष्टि से कितने कालों में बांटा जा
सकता है?
2. ब्यूल व एगोरा का अर्थ क्या है?
विस्तार से विवरण दें :
उपयोगी शब्द होमर, एगोरा, ब्यूल, परोआसी, हैलोट, थीट्स
1. यूनानी सभ्यता के धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन की विशेताएं बताएं।
आओ करके देखें :
1. विश्व के मानचित्र पर यूनानी नगर दर्शाएं।
2. यूनानी देवी – देवताओं की सूची बनाकर उनकी तुलना समकालीन सभ्यताओं के देवी-देवताओं से करें।
रोमन सभ्यता
1000 ई.पू. के लगभग रोम एक छोटा-सा गाँव था, जो मध्य इटली में टाइबर नदी के किनारे सात पहाड़ियों पर बसा हुआ था। इसलिए इसे ‘सात पहाड़ियों का नगर’ भी कहा जाता था । आठवीं सदी ई. पू. में यह नगर राज्य बना और बाद में नगर राज्य से यह एक विशाल साम्राज्य बना। एटुस्कन जाति ने रोम की सभ्यता के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण योग दिया। इस जाति के लोगों ने विशाल भवनों का निर्माण करवाया और यहाँ अनेक नगरों की स्थापना की । इटलीवासियों ने वर्णमाला, कला, युद्ध तथा अस्त्र-शस्त्र आदि का ज्ञान भी इसी जाति से सीखा। 500 ई.पू. में रोम के लैटिन आर्यों ने एट्रुस्कन जाति को परास्त किया और रोम पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके पश्चात् रोम निरन्तर विकास की ओर अग्रसर होता रहा। रोमुलस रोम का प्रथम सम्राट बना। रोमन सभ्यता का राजनीतिक इतिहास निम्नलिखित चार भागों में बांटा जाता है:
- 1.राजतंत्र काल (753 ई. पू. – 509 ई. पू.)
- 2.गणतंत्र काल (509 ई. पू. – 133 ई. पू.)
- 3.सैनिक अधिनायकों का काल (133 ई.पू.- 27 ई.पू.)
साम्राज्यवादी काल (27 ई.पू. – 476 ई. तक) में बांटा जाता है।
राजतंत्रकाल में राजा राज्य का अध्यक्ष होता था। उसके अधिकार असीमित थे । राजतंत्रकालीन समाज दो वर्गों में विभक्त था – पैट्रीशियन वर्ग एवं प्लेबियन वर्ग । पैट्रीशियन वर्ग में लैटिन लोग थे, जो रोम के ही वास्तविक निवासी थे। इस वर्ग में रोम के उच्च एवं कुलीन परिवार के व्यक्ति आते थे। दूसरा वर्ग प्लेबियनों का था, जिसमें स्वतंत्र दास, भूमिहीन और गरीब व्यक्ति आते थे, जिनको राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। इसमें रोम में अनेक सड़क, नहर व पुल बने। रोम की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर एक दीवार का निर्माण करवाया गया। रोम में सुन्दर भवन और मंदिर बने ।
आगस्टस का युग 31 ई.पू. – 14 ई. पू. रोम का ‘स्वर्णयुग’ कहलाता है। उसका युग शान्ति और समृद्धि का युग था । उसके अधीन रोम ने विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व उन्नति की । रोमन सभ्यता की उस समय की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है :
रोम की सभ्यता को जानने के साधन :
12 पट्टिकाओं पर लिखे लेख – ट्वेल्व टेबल्स ।
रोम के पुरोहितों द्वारा लकड़ी की तख्तियों पर लिखे लेख – एनल्स पोंटीफिकम ।
लिवि की रचनाएँ : पालिबियस व डिओडोरस के लेख ।
चित्र 13: रोमन सिक्के
1. प्रशासनिक व्यवस्था : रोम में गणतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था जनता द्वारा चुनी हुई सीनेट के हाथों में केन्द्रित थी। सीनेट के सदस्यों की संख्या 300 थी परन्तु ये सब सदस्य पैट्रीशियन वर्ग के होते थे। सीनेट द्वारा दो न्यायाधीश नियुक्त किए जाते थे, जिन्हें ‘कौंसल’ कहते थे। इनका कार्यकाल एक वर्ष का होता था । वे मुख्य न्यायाधीश, प्रमुख सेनापति तथा प्रशासक थे। कौंसल की सहायता के लिए एक वित्त अधिकारी होता था, जिसे क्वेस्टर्स कहते थे। इसके अतिरिक्त प्रशासन में सहायता देने के लिए तीन पदाधिकारी और होते थे – सेन्सर्स, कर वसूल करने वाला अधिकारी, एल्डीज, शान्ति व्यवस्था बनाए रखने वाला और प्रोटोर न्यायाधीश इनकी नियुक्तियाँ एक वर्ष के लिए की जाती थी । प्रान्तों के शासन – प्रबन्ध का संचालन करने के लिए गवर्नर नियुक्त किए जाते थे। इनका कार्यकाल एक वर्ष का होता था । गवर्नरों को वेतन नहीं मिलने के कारण वे जनता से मनमाना कर वसूल करते थे । सीनेट द्वारा पारित किये गये कानून को एसेम्बली अस्वीकार नहीं कर सकती थी ।
गतिविधि : रोम नगर के विकास की यात्रा का विवरण तैयार करें।
2. आर्थिक व्यवस्था : रोमन लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था। गेहूँ, जौ, बाजरा, अंगूर, जैतून, सेब आदि मुख्य फसलें थी । भूमि पर धनी पुरुषों का अधिकार था। रोम में व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग धन्धों का विकास अधिक विकसित नहीं था फिर भी यहाँ बर्तन उद्योग, वस्त्र उद्योग, सोना-चांदी के आभूषण रोम पहले एक नगर राज्य द्वारा फिर वह मध्य इटली के लैटिन प्रदेश में एक राज्य बना, इसके पश्चात इसमें समूची इटली का विलय हो गया तथा अंत में इसने एक विशाल
साम्राज्य का रूप धारण कर लिया। आदि बनाने का कार्य किया जाता था। राज्यों को खानों और नमक उत्पादन से भी आमदनी होती थी। ये लोग भारत से मलमल, अफ्रीका से धातु, चीन से रेशम, यूनान से लोहे का व्यापार करते थे ।
चित्र 14: रोमन देवता जुपिटर
3. सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था : रोम के सामाजिक जीवन का मूल आधार परिवार था। परिवार संयुक्त होते थे। परिवार के सदस्यों को मुखिया की आज्ञा का पालन करना पड़ता था । रोम के निवासी प्रकृति के देवताओं की अपेक्षा आत्माओं की उपासना में अधिक विश्वास करते थे। उनके देवता इस प्रकार थे – जुपिटर (शांति का देवता ), मार्स ( युद्ध का देवता ) और वीनस ( प्रेम की देवी), वेस्टा ( अग्नि देवता), अपोलो (संगीत व कला का देवता) आदि प्रसिद्ध थे । रोम की शासन व्यवस्था की धुरी धार्मिक विचार ही थे।
गणतंत्र काल में राज्य की वास्तविक शक्ति जनता के हाथों में थी । लेकिन प्लेबियन व दास वर्ग को किसी भी प्रकार का राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था। प्लेबियन वर्ग इसके लिए निरंतर संघर्ष करते रहते थे।
आओ फिर से याद करें :
1. रोम को सात पहाड़ियों का नगर क्यों कहा जाता है ?
रोमन साम्राज्य में सड़कों का जाल बिछा हुआ था। ये सड़कें विश्व के सभी प्रमुख देशों / नगरों को रोम से जोड़ती थी। अतः यह लोकोक्ति उचित नी होती है कि “सभी हैं? सड़के गेम को जाती हैं।’
क्या आप जानते
2. रोमन सभ्यता को राजनीतिक दृष्टि से कितने कालों में बांटा जा
सकता है?
3. रोम की शासन व्यवस्था कैसी थी ?
”
उपयोगी शब्द
एट्रुस्कन, प्लेबियन, पैट्रशियन, कौंसल, क्वेस्टर्स
विस्तार से विवरण दें
- 1. रोमन सभ्यता के प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन का विवरण दें। आओ करके देखें :
- 1. विश्व के मानचित्र पर रोमन साम्राज्य से जुड़े देशों को दर्शाएं।
- 2. रोमन सभ्यता के सामाजिक वर्गों की सूची बनाएं।
- 3. यूनानी देवी-देवताओं की सूची बनाकर उनकी तुलना समकालीन सभ्यताओं के देवी-देवताओं से करें।
चीन की सभ्यता
चीन की सभ्यता भी एक प्राचीन सभ्यता है। इस सभ्यता का विकास तीन हजार ई.पू. के आस-पास माना जाता है। इस सभ्यता का उदय सिक्यांग, ह्वांग ह्वो तथा वांग ह्वो, नदियों के आस-पास हुआ। इन नदियों में बाढ़ आने के कारण चीनी लोग इन्हें विपत्ति मानते थे परन्तु इन्हीं नदियों ने चीन की सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। चीनी इतिहासकारों के अनुसार फू-सी चीन का पहला सम्राट था, जिसने 2852 ई. पू. से लेकर 2738 ई.पू. तक शासन किया। उसने चीनियों को घर बनाना, शिकार करना, जानवर पालना आदि कार्य सिखाकर चीनी सभ्यता की नींव डाली। चीन का दूसरा प्रमुख सम्राट था शेन – नुंग था । उसने चीनियों को खेती करना सिखाया ।
तीसरा सम्राट –
हुआंग टी (पीला सम्राट) था। इसने महासम्राट की उपाधि धारण की और छोटे-छोटे भू-भागों में विभाजित चीन को संयुक्त बनाया तथा अपने साम्राज्य को उन्नति के शिखर तक पहुँचाया। इसके बाद यहाँ विभिन्न राजवंशों क्रमशः हासिया वंश, शांग वंश, चाऊ वंश, चिन वंश, हान वंश, तांग वंश, शुंग वंश ने शासन किया।
चीन की सभ्यता को जानने के साधन
> पौराणिक कथाएँ
> कन्फ्यूशियस द्वारा रचित भूचिंग व भीचिंग (काव्य संग्रह)
> पुरापाषाणिक अवशेष
> अस्थि अभिलेख
मृदभाण्ड, ध्वनिबोधक चित्र
1. शासन-व्यवस्था : राजा-चीन में राजा को ‘वांग’ कहा जाता था। वह सबसे बड़ा न्यायाधीश तथा पुरोहित होता था। वह स्वेच्छाचारी भी होता था । जनता उसे अपना पिता समझती थी और उसे ईश्वर पुत्र कहकर उसकी पूजा करती थी ।
मंत्री परिषद् – वांग ने शासन-कार्य के लिए मंत्री परिषद् का गठन किया हुआ था। उसके अधीन चार मंत्री होते थे, जो राजा को प्रशासनिक कार्यों में परामर्श देते थे। इसके अतिरिक्त छह सदस्यों की कार्यकारिणी परिषद् भी थी। जैसे- लोकसेवा समिति, माल व वित्त समिति, संस्कार व उत्सव समिति, युद्ध व रक्षा समिति, दण्ड व न्याय समिति तथा सार्वजनिक हित समिति। चीन में सामान्यतः योग्य व्यक्तियों को ही सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था।
गतिविधि : चीन के प्रमुख पुरास्थलों की एक सूची बनाएं।
प्रान्तीय शासन-व्यवस्था : दो या तीन ‘हीन’ (गांवों का समूह) का एक ‘फू’ बनता था जो प्रांत के समान होता था । प्रांतों को ‘सैंग’ भी कहा जाता था । यहाँ छोटे-छोटे गाँव और नगर थे, जिनकी शासन व्यवस्था एक न्यायाधीश और एक राज्यपाल चलाता था। इनकी नियुक्ति सम्राट करता था
2. आर्थिक दशा: कृषि एवं पशुपालन – चीनी लोगों का मुख्य कार्य कृषि और पशु पालन था । यहाँ बाजरा, चावल, गेहूँ तथा फलों की खेती होती थी । उपजाऊ भूमि पर नौ परिवार मिलकर सामूहिक रूप से खेती करते थे। इस व्यवस्था को चिंगतियेन प्रणाली कहा जाता था।
उद्योग-धन्धे : चीन में उद्योग-धन्धों का आश्चर्यजनक रूप से विकास हुआ था। चीनियों का मुख्य व्यवसाय रेशम का उद्योग था । चीनियों का एक अन्य मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना भी था। चीन में लोग वंशानुगत व्यवसाय करते थे और इसे बदलना पाप समझते थे।
व्यापार एवं वाणिज्य : चीन ने व्यापार के क्षेत्र में भी बहुत विकास किया। सम्राट शी हुआंग टी ने व्यापार के विकास के लिए चीन में सड़कों का जाल बिछा दिया। यहाँ व्यापारियों के संघ बने हुए थे जो विदेशों से ऊन, तम्बाकू, शीशा, कीमती पत्थर मंगवाते थे तथा चीनी मिट्टी के बर्तन बारूद व ताश विदेशों में भेजते थे।
3. सामाजिक व्यवस्था : चीनी समाज में शिष्टाचार प्राचीन काल में चीन के लोग अपने अतिरिक्त किसी अन्य जाति को सभ्य नहीं समझते थे।
चित्र 15: चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस
चित्र 16 : चीनी पुरास्थलों से प्राप्त मानव अवशेष
क्या आप जानते हैं?
वे अपने को “स्वर्ग के नीचे स्थित राज्य ( तिएन – शिया ) कहते थे । “
और नम्रतापूर्ण व्यवहार को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। चीनियों के अनुसार संसार के निर्माता ‘पानकू’ ने समाज के चार वर्ग बनाए। प्रथम वर्ग मंदारिन का था। इसमें विद्वान, अध्यापक, उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आते थे। दूसरा वर्ग किसानों का, तीसरा वर्ग कारीगरों का व चौथा वर्ग व्यापारियों का था। चीन में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी।
4. धार्मिक व्यवस्था : चीन के विद्वान एकेश्वरवादी तथा जनता बहुदेववादी थी । यहाँ प्रकृति की पूजा की जाती थी। जैसे- आकाश का देवता (यंग), वायु तथा पृथ्वी का देवता (चीन) मुख्य थे। चीनी लोग अंधविश्वासी भी थे। वे भूत-प्रेत, अपशकुन व जादू-टोने में विश्वास करते थे । चीन में कन्फ्यूशियस व लाओत्से प्रमुख दार्शनिक मत थे। जिसे चीनी लोग ‘कुंग – जु’ के नाम से भी पुकारते हैं। छठी शताब्दी ई. पू. में भारत से यहाँ बौद्ध धर्म का भी काफी प्रसार हुआ।
विस्तार से विवरण दें :
1. चीनी सभ्यता के राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन की विशेषताओं का
विवरण दीजिए।
चित्र 17: चीनी भवन
आओ फिर से याद करें :
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
1. चीनी सभ्यता के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक इतिहास की विशेषताएं क्या थी?
2. चीनी सभ्यता की प्रान्तीय शासन व्यवस्था कैसी थी ?
आओ करके देखें :
1. चीन की सभ्यता के उदय में भूमिका अदा करने वाले प्रमुख नदियों की सूची बनाएं एवं मानचित्र
पर दर्शाएं।
2. कन्फ्यूशियस एवं बौद्ध धर्म की प्रमुख विशेषताओं की तुलना करें।
माया सभ्यता
उत्तर अमेरिका महाद्वीप के दक्षिण में 500 ई.पू. और 1000 ई. के बीच फली फूली सभ्यता को ‘माया सभ्यता’ कहा जाता है। वैसे यह सभ्यता लगभग 4000 ई. पूर्व पुरानी है । । यह सभ्यता आधुनिक ग्वाटेमाला, बेलिजे, दक्षिण पूर्व मैक्सिको और होंडुरास तथा अल सेलवेडोर के पश्चिमी क्षेत्रों में फैली हुई थी । माया सभ्यता अपने आप में कोई साम्राज्य या एकीकृत राजनीतिक इकाई नहीं थी बल्कि बिखरे हुए बड़े-छोटे शहरों और गाँवों की एक सांस्कृतिक इकाई थी । यद्यपि इनमें से अधिकांश शहर या गाँव एक दूसरे से जुड़े थे। टीकल, कलकमुल, कोपान और पालेंके यहां के प्रमुख शासकीय राजवंश थे। इनकी प्रमुख विशेषताएँ – इनका भव्य स्थापत्य, ललित कला, लेखन कला, खगोल विज्ञान और कैलेंडर आदि हैं जो इन्हें विश्व की परिष्कृत और विकसित सभ्यताओं की पंक्ति में खड़ा कर देते हैं। घरों की दीवारें लकड़ी की हुआ करती थी और इनकी छतें ताड़
के पत्तों से बनाई जाती थी।
माया सभ्यता के इतिहास को जानने के साधन
माया सभ्यता मे स्थित नगरों की खुदाइयों से मिलने वाले पुरावशेष, मिट्टी के बर्तन, नक्काशी, कलात्मक वस्तुएं व ग्लिफ ।
> रासहीथर की रचना, प्राचीन मायाः नया परिप्रेक्ष्य ।
> माया किताबें या कोडिसिस ।
चित्र 18: माया सभ्यता के भवन
1. राजनीतिक व्यवस्था :
माया सभ्यता में राज्यों के मुखिया ‘असली पुरुष’ या ‘हेलेक यूनिक’ के नाम से जाने जाते थे। इनका पद अनुवांशिक था। हेलेक यूनिक राज्य के लौकिक तथा अलौकिक प्रतिनिधि माने जाते थे। इनके अधीन अन्य शहरों के सरदार थे जिन्हें ‘बाताबोब’ कहते थे। बाताबोब पर अपने शहर के शासन की देखरेख का जिम्मा था। इसके अतिरिक्त एक नगर परिषद् भी होती थी जिसमें शहर के विभिन्न उप-मंडलों के सरदार शामिल रहते थे। यद्यपि वे बाताबोब के अधीन थे परंतु बाताबोब के किसी भी कार्य पर रोक लगा सकते थे। जरूरत पड़ने पर बाताबोब सेना का नेतृत्व भी करते थे।
2. सांस्कृतिक एवं धार्मिक व्यवस्था :
माया सभ्यता का पंचाग 3114 ई.पू. शुरू किया गया था। इस कैलेन्डर में हर 394 वर्ष के बाद बाकतुन नाम के एक काल का अंत माना जाता था। देवताओं के चित्र गचकारी मुखौटों से बनाए जाते थे व उनकी पूजा चबूतरों पर बने मन्दिरों में की जाती थी। देवताओं को शासक वर्ग अपने पूर्वज मानते थे। किसी भी कार्य को करने से पहले देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि दी जाती थी । यहाँ पर भी नगर व राज्यों के अपने-अपने देवता थे ।
क्या माया सभ्यता अपने आप में कोई साम्राज्य या राजनीतिक इकाई नहीं थी अपितु आप जानते छोटे-छोटे गांवों, कस्बों एवं हैं? नगरों की सांस्कृतिक इकाई थी।
चित्र 19: माया सभ्यता का पंचांग
चित्र 20: यक्ष चीलान
से प्राप्त लिंटल
गतिविधि : माया सभ्यता के क्षेत्र में पड़ने वाले
उत्तरी अमेरिका के विभिन्न भागों की सूची बनाएं।
3. आर्थिक व्यवस्था : मायावासी कृषि एवं पशुपालन में विशेष ध्यान देते थे। यहाँ गेहूँ, जौ, चना, गन्ना, नारियल आदि फसलें उगाई जाती थीं। इनके साथ – साथ पशुपालन में गाय एवं बकरी विशेष पशु थे। माया सभ्यता में नाव, सूती वस्त्र व तांबे की घंटियाँ, तलवार व आभूषण बनाना प्रमुख कार्य थे। वे अपने बाताबोब एवं हेलेक यूनिक तथा अन्य धनी लोगों के लिए सुन्दर नक्काशीदार लकड़ी का प्रयोग करके घर बनाते थे। किसान व साधारण लोगों के घर कच्चे होते थे जिन्हें ‘ना’ कहा जाता था। मायावासियों ने चौड़ी सड़कें बनवाई हुई थी जो ‘स्केब’ या ‘स्केबओब’ के नाम से जानी जाती थी।
आओ फिर से याद करें :
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएँ
1. माया सभ्यता किन क्षेत्रों में फैली हुई थी ?
2. माया सभ्यता का श्रेष्ठ युग किसे माना जाता है ?
आइए विचार करें :
1. माया सभ्यता के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की विशेषताओं का विवरण दीजिए
आओ करके देखें
1. अमेरिका के मानचित्र पर माया सभ्यता से जुड़े स्थान अंकित करें। 2. माया सभ्यता के पंचांग की सुमेरियन सभ्यता के पंचांग से तुलना करके देर
उपयोगी शब्द
हेलेक यूनिक, बाताबोब, बाकलुन, स्केबओब, ना